क्या सच में संसद हमारी महा पंचायत है

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Empty seats seen during assembly session at Vidhana Soudha in Bangalore on Friday. –KPN

भारतीय समाज में पंचायत की व्यवस्था किसी को नहीं है लेकिन नहीं तो यदि हमारे बारे में बात करें तो यह व्यवस्था हमारे देश में वैदिक समय से ही गतिशील हो रहा है।
हां यह सच है कि उनके रूप बदलते हैं.हमारा वर्तमान लोकतंत्र प्रणाली वास्तव में इसी महत्वपूर्ण व्यवस्था का आधुनिकीकरण है जिसका प्रतीक है हमारे राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में स्थित हमारे सांसद भवन …
लेकिन सवाल उठता है कि क्या सचमुच आज हम जो संसद को पता है, यह हमारे राष्ट्रीय महापंच है?
या फिर क्या सचमुच हमारा संसद सचमुच हमारे लोकतांत्रिक सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने के लिए जगह है? ???
इस तरह के हमारे प्रश्नों को पैदा करने का कारण है हमारे वर्तमान लोक सभा का परंपरा लगातार कम होना होगा
आज हालात यह हैं कि हमारे प्रधान मंत्री अपनी महत्वपूर्ण व्याख्यान दे रहे हैं तो हमारे विपक्ष के जिम्मेदार सांसद शोरशराबे में मस्त हैं सलवा भी यह है कि प्रति व्यक्ति करीब दस लाख रुपये खर्च कर रहे हैं इस लोकसभा व्यवस्था में यह बनावट अवरोध आखिर क्यों?
क्या सांसद भवन में बैठे हैं और लाखों जन-समुदाय का प्रतिनिधि क्या सच में अपनी आचरण से देश और देश के जनता के साथ न्याय कर रहे हैं?
प्रश्न यह भी है कि क्या सांसद भवन के अंदर घटित होने वाली इन अनावश्यक गतिविधियों से हमारे राष्ट्रीय महापंचत की गरिमा का छल नहीं होगा।
क्या सचमुच हमारा संसद हमारे महान पंचायत है यह सवाल पैदा हो रहा है एक कारण यह भी है कि हमारे जनप्रतिनिधि लगातार संसदीय आचरण को भी त्याग कर रहे हैं .माम रिपोर्ट यह बताता है कि कभी-कभी संसद भवन में ऐसा विचित्र माहौल भी देखा जब कोई राष्ट्रीय महत्व का विषय में बहस का बयामी कम करने तक पूरा करने का संकट खड़ा हो जाता है।
बदलते समय जनसाधारण की आकांक्षा ही यही है कि हमारे जनप्रतिनिधि ऐसा व्यवहार करना सचमुच हमारे धरोहर सिद्ध हो। मुझे याद है कि एक बार जब पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कालम के मुलाकात एक स्कूल गए थे तो किसी ने ऐसा सवाल किया था कि राष्ट्रपति को जवाब देने में असहजता महसूस भी की थी
जी हां दोस्तों वहां किसी बच्चे ने राष्ट्रपति महोदय से यह पूछा था कि
“सर रोज रोज राजनैतिक प्रतिनिधित्व क गिरते आचरण को देखते हुए हमें बताइए कि हम किसके जैसा बनें ? ?? “
राष्ट्रपति को इस प्रश्न के उत्तर में कठिनाई हुई है कि वहां लगातार गिरते हुए संसद की गरिमा ने खुद को भी यही प्रश्न पैदा किया था कि
क्या सचमुच हमारा संसद देश का सबसे बड़ा पंचायत है? ?
सबसे बड़ा पंचायत कहने का आशय, उसके क्षेत्रफल से नहीं, लेकिन
कथाकार प्रेम चंद्र की सर्वकालिक कहानी पंचायत में वर्णित है कि पंचायत गरिमा से है जिसमें एक कुटिल व्यक्ति की आकांक्षा में मातमी डालकर एक सार्वभौमिक सत्य की प्रतिष्ठा करना गरिमा को स्थापित किया गया था ..
यदि आज यह प्रश्न पैदा हुआ है कि
वास्तव में हमारे पंचायत में हमारा सबसे बड़ा पंचायत है तो इसका जवाब भी हमारे राष्ट्रीय का प्रतीक संसद से ही ौरव आना चाहिए क्योंकि मैंने सुना है कि
सच्चाई का सबसे प्रयोग उसका प्रयोग है न कि उसकी महिमा मंडन …।
धन्यवाद
लेखक: के पी सिंह
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08022018