शिक्षा एक मौलिक अधिकार है
शिक्षा वास्तव में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की प्रगति के साथ साथ सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के लिए भी आवश्यक है ।हमारे प्राचीन संदर्भों के यह कई बार उल्लेख किया गया है कि “ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है जो उसे दुनिया की वास्तविकता को जानने में सहायता करता है लेकिन शिक्षा इस तीसरे नेत्र की नेत्री है जो मनुष्य को सही और गलत चुनने में सहायता करती है”
महाभारत मे भी इस बात का उल्लेख है कि शिक्षा के समान कोई दूसरा शूक्षम ज्ञानी और सत्य के समान कोई दूसरा करने योग्य कार्य या तप नही है ।शिक्षा के संबंध में यह भी कहा गया है कि शिक्षा हमें विनय प्रदान करती है और विनय हमें पात्रता प्रदान करती है ।पात्रता ही इस आधुनिक जीवन में धन के काबिल बनाती है और अंततः धन से धर्म और धर्म के बाद हमें वास्तविक सुख की प्राप्ति होती है ।
गुरुकुल के जमाने से जिस दिन शिक्षा को निकाल कर मैकाले की गोद में हमने डाल दिया था तब से लेकर आज तक हमारे समाज की कुछ महत्वपूर्ण बहसों में शिक्षा सदैव शामिल रहती है ।इसका कारण यह है कि आज शिक्षा केवल शिक्षा दान नही है बल्कि आज भारत मे यह एक कानूनी सत्य भी है ।सभी के लिए शिक्षा एक मिथक है या वास्तविकता आइए जानते हैं अगली पंक्तियों में ।

सभी के लिए शिक्षा और हमारे कानून

मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य विवाद में सन 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा पाने के अधिकार को प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार बताते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया था ।विचारणीय है कि अनुच्छेद 21 के तहत भारतीय संविधान में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को भी शामिल किया गया है ।अर्थात कानून की नजर में शिक्षा हमारे देश
के प्रत्येक नागरिक के लिए प्राण के समान बताई गई है ।
यूनी कृष्णन बनाम आंध्रप्रदेश 1993 का मामला भी इसी बात को शिद्दत से महसूस करता है कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होने का मौलिक अधिकार है ।इसमे किसी तरह की कोई बाधा नही खड़ी की जा सकती ।फिर यह बाधा या अवरोध खड़े करने वाले खुद मां बाप ही क्यों न हों ।
उपर्युक्त लाइने यह साबित करने के लिए काफी हैं कि हमारी सरकारों के साथ साथ इस देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी एक नही कई बार यह सत्य स्थापित किया है कि सभी के लिए शिक्षा जिन्दा रहने के लिए जरूरी हवा और पानी की तरह ही
बेहद जरूरी है ।

सभी के लिए शिक्षा को संवैधानिक सहमति

भारतीय संविधान में 86 वें संविधान संशोधन में सन 2 002 मेंअनुच्छेद
21 और 21क जोड़कर शिक्षा की जरूरत को कुछ इस तरह परिभाषित किया गया था
“राज्य किसी ती रीति से यह विधि बनाकर
सुनिश्चित करे कि 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु का बच्चा निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा से वंचित न रहे ।”
ध्यान रहे अनुच्छेद 41, 45,46 में भी इसी आशय की पुष्टि की गई है कि राज्य
इस बात का विशेष ध्यान रखे कि शिक्षा के लिए जरूरी उम्र अवधि में बच्चे शिक्षा से वंचित कतई न रह सकें ।

कुछ सवाल सभी के लिए शिक्षा से

1 अप्रैल 2010 से प्रभावी हुए सभी के लिए अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा कानून के बाद यह देखना बेहद जरूरी है कि आज इसकी वास्तविकता क्या है? क्या सचमुच इस कानून का समाज मे कुछ फर्क दिखता है या फिर यह महज एक सुन्दर मुहावरा मात्र है । क्योंकि यह हमें नही भूलना चाहिए कि आजादी के पचासों साल बाद हम केवल कानून की दहलीज तक पहुचे हैं ।यह कितना कारगर है कोई नही जानता ।

सच्चाई और सपना बनाम
सभी के लिए शिक्षा मिथक या वास्तविकता

किसी भी सच्चाई की तह तक जाने के पहले यह जानना बेहद दिलचस्प है कि हमारी सरकारें भले ही शिक्षा और समाज के कल्याण की दुहाई देती रहें वास्तविकता यह है कि वर्तमान में भारत सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज दो प्रतिशत ही खर्च कर रही है ।इस सच्चाई का दूसरा पहलू है कि यदि हमें केवल भाषण में सबके लिए शिक्षा की चिन्ता न करके वास्तविक रूप से चिन्ता करना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में जीडीपी का 10%खर्च करना होगा ।

सब पढें सब बढे की हकीकत यह है कि देश की वर्तमान साक्षरता दर 74•04% है ।

देश में निजी और सार्वजनिक स्कूलों का अनुपात 7:5 है।

देश में 15•16 लाख स्कूल हैं ।भारत में
कुल विश्वविद्यालय 760 हैं ।

सबसे बड़ी शिक्षा की विडम्बना यह है कि देश की आजादी के समय कुल जनसंख्या 36 करोड़ से बढ़कर आज 130 करोड़ हो गई है लेकिन इसी अनुपात में शिक्षक और छात्र अनुपात कम नही हुआ बल्कि यह बढता ही जा रहा है
अपने अंतिम निष्कर्ष में मैं यह कहना चाहता हूं कि देश के भविष्य को संवारने का काम योग्य व्यक्ति के हांथ मे हो या अयोग्य व्यक्ति के हांथ में हो इसका समाधान कोई भी सरकार नही कर पा रही
और इस बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र को राजनीतिक अखाड़ा या राजनीतिक महत्वाकांक्षा हासिल करने का जरिया मान लिया गया है ।इसी लिए अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि अभी तक तो महज मिथक है सभी के लिए शिक्षा ।।वास्तविकता से कहीं दूर ।।
धन्यवाद
लेखक :केपी सिंह
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11 COMMENTS

  1. शिक्षा को पूर्ण रूप से प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि इसे योग्य हाथों में देना चाहिए, साथ ही उनका पारिश्रमिक इतना होना चाहिए कि वे प्रसन्न मन से बालक के विकास की ओर ध्यान दें | अक्सर देखा जाता है कि शिक्षक वेतन असमानता से असंतुष्ट होने के कारण हड़ताल पर रहते हैं |

    • आप यह नही कह सकते कि वेतन कम है आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि
      DRDO के वैज्ञानिक पद की ग्रेड पे 4600/4800 के बराबर है
      उन अध्यापकों का जो जीवन में एक भी परीक्षा पास कर के अध्यापक नही बने ।
      जिस व्यक्ति ने जीवन मे कभी खुद नही पढा वह दूसरे को क्या पढाएगा
      प्रथम संस्था की रिपोर्ट कहती है कि 8वी का छात्र पांचवी की योग्यता नही रखता ।
      यह कमाल है वोट के लिए अयोग्य को शिक्षक बनाने का ।