सुना है कि तू बेवफा हो गया है

दोस्तों
यह मेरी शिकायत आप से नही है और न ही किसी अन्य व्यक्ति से यह मेरी कोई खास शिकायत है बल्कि इसकी सच्चाई यह है कि
वर्तमान में यूपी के भाजपा विधायक जनों की शिकायत है और वह भी प्रदेश सरकार और उसके तमाम बड़े अधिकारियों से ।यह शिकायत कितनी गम्भीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि माननीय योगी जी को अपने रूठे हुए और साथ ही तमतमाए हुए माननीयों को समझाने के लिए बाकायदा एक आयोजन करना पड़ा ।इतना ही नहीं सरकार को सम्मान का सम्मन भी अधिकारियों के नाम निकालना पड़ा अर्थात राज्यादेश जारी करना पड़ा ।

अपमान की हकीकत

मामला एक पीड़ा से प्रारंभ होता है ।सरकारी गैर सरकारी विधायकों का कहना है कि जब भी वह जनता के किसी काम से अफसरों से रूबरू होते हैं तो यह अधिकारी
न ही तवज्जो देते हैं और न ही यह सम्मान देते हैं ।।जब कि हम लोकतंत्र की रक्षा करने वाले जनप्रतिनिधि हैं हमें सम्मान और खास तवज्जो मिलने का संवैधानिक अधिकार है
बजट सत्र के पूर्व योगी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी माननीयों को यह बताने की कोशिश की है कि वह निश्चित रहें ।आप को तवज्जो और सम्मान सरकारी अधिकारियों से मिलेगा यह
शासन के आदेश के द्वारा सुनिश्चित कर दिया गया है ।

सच के आइने में सामाजिक हकीकत

ध्यान से देखें तो यह पतन की पराकाष्ठा की तरफ बढती एक सामयिक समस्या प्रतीत होती है लेकिन ऐसा नही है।सच यह है कि जिन माननीयों को अधिकारियों से दिक्कत है वह वास्तव में स्वंय ही किसी दिक्कत से कम नही हैं ।यह बात जनता भी जानती है और अधिकारी भी कि वर्तमान में कोई व्यक्ति विधायक अपने सदाचार से नही बनता बल्कि इसके लिए छल बल खल सब की महती भूमिका होती है ।
जो माननीय विधायक बनने के लिए पार्टी को चंदा देने के नाम पर टिकट की ज्यादा से ज्यादा कीमत देते हैं वह कितने सम्मान के पात्र हैं यह जानना बेहद जरूरी है क्योंकि यह लोग सचमुच जनता के प्रतिनिधि नही बल्कि किसी पार्टी के दलाल या एजेंट खुद को ज्यादा साबित करने वाले होते हैं ।
जो अधिकारी अपने जीवन में सिर्फ अपनी मेहनत के बल पर इस प्रतिष्ठित पद पर पहुचा है क्या उसके लिए सम्मान नही व्यक्त किया जाना चाहिए ।जब प्रशासन के
सामने ही जनता के तथाकथित प्रतिनिधि लोकतंत्र के साथ बेहयायी करते हैं तो आप ही बताइए क्या ऐसे लोग किसी से सम्मान की उम्मीद कर सकते हैं

सुना है कि सचमुच तू बेवफा है

सच तो यह है कि आज लोकतंत्र की दुहाई देने वाले इस देश में बहुत कुछ लोकतांत्रिक या सम्मानीय नही है ।जिन लोगों को समाज के सामने खुद को एक उदाहरण के रूप में पेश होना चाहिए वह रातों रात पाला बदल कर बेवफा से वफादार और वफादार से बेवफा बन जाते हैं ।मजे दार यह है कि नेता इसके बाद भी सम्मान का भूखा रहता है यह काबिले तारीफ है ।क्योंकि कोई हिम्मत वाला ही खुद असम्मानित आचरण करके
दुनिया से सम्मान की गारंटी मांग सकता है

सम्मान की लड़ाई मे जीत किसकी होनी चाहिए

सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस सम्मान की तथाकथित लड़ाई मे किसे जीत मिलनी चाहिए और किसे सम्मान की लड़ाई में हारना चाहिए ।दोस्तों यह रोचक और ध्यानाकर्षक सवाल है जिसका जवाब भी तलाशना बेहद जरूरी है ।क्योंकि सम्मान सब के लिए बेहद जरूरी है ।राजा हो या रंक बिना सम्मान के सबका जीवन जीवन नही कहलाता ।इसे सरल शब्दों में कहें तो सम्मान सब के जीवन का अपरिहार्य अंग है
जहां तक मेरे दृष्टिकोण की बात है तो वह बिलकुल साफ है और वह यह है कि इस लड़ाई में शामिल दोनों योद्धाओं को सम्मान मिलना चाहिए ।यदि जनप्रतिनिधि जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं तो लोक सेवक भी लोक के प्रतिनिधि हैं और यह भी जनता के लिए ही कार्य सम्पादन करते हैं
काम और महत्व के तल पर आप तभी कुछ खास हो सकते हैं जब आप सचमुच जनता का कल्याण ज्यादा सरल बना रहे हों ।

अगर एक विधायक जो जनता की सेवा के लिए चुना गया है और वह जनविरोधी कार्यों में संलिप्त है तो उसे सम्मान नही सम्मन ही मिलना चाहिए ।ठीक इसी प्रकार जनता की सेवा के लिए सक्षम समझे गए किसी लोक सेवक में यदि अक्षमता पायी जाती है तो वह भी सम्मान नही सम्मन का ही अधिकारी है ।”सुना है कि तू बेवफा हो गया “जैसी खास बहस के निष्कर्ष में इतना ही कहा जा सकता है कि सम्मान पाने का अधिकारी वही है जो खुद सम्मानित आचरण का प्रतिनिधित्व करता हो ।। सुना है कि तू बेवफा हो गया है

धन्यवाद
लेखक :के पी सिंह
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