हम सचमुच किसके गुलाम हैं? ??

Lifehacks :     आप कहेंगे हम तो सन् 1947 में गुलामी से आजाद हो गए थे फिर यह गुलामी और आजादी वाली बात क्यों की जा रही है,  तो दोस्तों मैं आपसे जो कहना चाहता हूं वह उस गुलामी की बात नही है, बल्कि मैं उस गुलामी की बात करना चाहता हूं जिस गुलामी में न केवल भारत वासी शामिल हैं बल्कि अंग्रेजों के साथ साथ पूरी की पूरी तथाकथित विकसित दुनिया ही शामिल है ।

क्या हम गुलाम हो चुके हैं? इस सवाल का जवाब भी देने के पहले आपको लगेगा कि यह भी एक फालतू सवाल है लेकिन दोस्तों इस बार भी मैं आपसे यही कहूंगा कि यह भी झूठ नही बल्कि सोलह आना सच है कि हम और हमारी आने वाली पीढ़ी की गुलामी पूरी तरह से सिद्ध हो चुकी है इसलिए यह पूरी तरह से सच है कि हम गुलाम हो चुके हैं । हम सब सच में इसके हैं गुलाम जी हां दोस्तों हम भारतीय लोग अंग्रेजों के साथ ही पूरी दुनिया की तरह जिसके गुलाम हैं वह कोई देश या कोई दैत्य दानव नहीं बल्कि वह गुलामी है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की गुलामी ।आप कहेंगे विज्ञान तो हमारे विकास का प्रमाण है इसमें गुलामी कहां से आई तो भाइयो बहनों जरा गौर फरमाने की कृपा करें और कहीं दूर मत जाइए केवल खुद पर एक सर्च निगाह डालिए ।आप हैरान रह जाएंगे कि सुबह से शाम और शाम से सुबह तक हमारा पल पल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ नही बीतता बल्कि यह बीतना गुलामी की तरह है जो हमें सोते जगते, उठते-बैठते हर वक्त कभी विज्ञान की छाया से दूर ही जाने नही देता ।

बढती विडम्बना और विज्ञान जी हां दोस्तों प्रेम चंद्र की कहानी मंत्र की तरह यद्यपि हम चिकित्सा सुविधा से एक तरफ वंचित नही रहते तो दूसरी तरफ यह विडम्बना नही तो और क्या है कि हम इसी विज्ञान की वजह से ही चिकित्सा की शरण में जाते हैं । क्या आपने महसूस नही किया कि हम जिस गति से अपने आप को विज्ञान का जीता-जागता दास बनाने की की सफल कोशिश कर रहे हैं वह हमारे विनाश का कारण है ।आज का आदमी इसके बावजूद यह सोच तक नही पाता कि विज्ञान हमारे लिए वह शासक बन चुका है जिसके राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता ।। सुबह-शाम बस यही कहानी जी हां दोस्तों हम छोटे छोटे उन दैनिक कार्यों के लिए विज्ञान के मोहताज बन चुके हैं जिन्हें हमें अपने शरीर की सुरक्षा के लिए करना चाहिए लेकिन वाह रे इन्सान रोटी बनाने की मशीन, गाय से दूध दुहने की मशीन और तो और अब हम यह भी कर रहे हैं कि यदि हम अपने खाने में विटामिन शामिल नही कर पाते तो विटामिन की गोली ही बना डाली ।यानी आप को विटामिन के लिए नीबू संतरा के पास तक नही जाना पड़ेगा और आपके शरीर को संतरे नीबू से मिलने वाले तत्व गोली खाने से मिल जाएंगे हमें सच में गोली से दुख नही है हमें दुख है तो सिर्फ इससे कि हम विटामिन भी शरीर को उधार ले कर दे रहे हैं ।

निष्कर्ष और हकीकत जिन लोगों को अब भी मेरी बात समझ में न आई हो तो मैं एक बार फिर दोहराना चाहता हूं कि हम जिस गति से अपने छोटे छोटे कामों के लिए हर क्षण विज्ञान के भरोसे रहने के आदी हो गए हैं यह हमारे लिए सामान्य स्थिति न होकर विचारणीय और बेहद गंभीर स्थिति है । तो क्या करें जनाब???? अगर आप भी झुंझलाहट में मुझसे यही सवाल करना चाहते हैं और मुझे विज्ञान का दुश्मन समझते हैं तो सबसे पहले तो यह दोनों विचार त्याग दीजिए फिर सच्चाई और बिना पूर्वाग्रह के सोचिए कि यदि हम अपने दैनिक छोटे छोटे कार्य खुद करेंगे तो मेहनत जरूर लगेगी लेकिन यह भी सोचिए कि तब आपका घर बीमारी से पीड़ित घर नही कहलाएगा बल्कि सुखी सम्पन्न घर कहलाएगा ।।मुझे विज्ञान चाहिए लेकिन इस हद तक नही कि मुझे इसकी सुविधा ही परेशान करने वाली हो ।

धन्यवाद!

लेखक : केपी सिंह

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